श्री सूक्त ( ऋग्वेद) Sri Suktam (A Vedic Hymn Addressed to Goddess Lakshmi)

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श्री सूक्तं Sri Suktam | Laxmi | Mahalaxmi | Mahalakshmi मूलतः ऋग्वेद के दूसरे अध्याय के छठे सूक्त अनुष्टुप छन्द में आनंदकर्दम ऋषि द्वारा श्री देवता को समर्पित काव्यांश है।

Lakshmi (लक्ष्मी) is the goddess of wealth, fortune, and prosperity; of each materials and non secular. She is the spouse and lively power (शक्ति) of Vishnu,नारायण. Maa Lakshmi is also referred to as Narayani, Her 4 fingers characterize the 4 objectives of human life thought of vital to the Hindu manner of life- dharma, kāma, artha, and moksha

Lakshmi can also be referred to as Sri or Thirumagal as a result of she is endowed with six auspicious and divine energy even to Vishnu.

Sri Sukta, additionally referred to as Sri Suktam, is a Sanskrit devotional hymn (set of slokas) revering Sri or Lakshmi, the Hindu goddess of wealth, prosperity and fertility. Sri sukta is recited, with a strict adherence to the vedic meter, to invoke the goddess’ blessings.

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Laxmi Mata Ke Gane
🙏🏻 धन लक्ष्मी माँ के चमत्कारी मंत्र – https://youtu.be/2JQrMCIvC4M
🙏🏻 Om Shreem Hreem Shreem: https://youtu.be/KP4CzkixoMk
🙏🏻 Om Mahalaxmi Namo Namah: https://youtu.be/rjK7heY5Vd0
🙏🏻 Om Brzee Namaha: https://youtu.be/tMoWk-nF6Rg
🙏🏻 Om Mahalaxmiyei Namah – https://youtu.be/6a6miDQfr3A

Music Credit:
Title: Sri Suktam
Singer: Kavita Raam
Music Director: Navin – Manish
Lyrics: Conventional
Music Label: Music Nova

Lyrics:
|| हरिः ॐ ||
हिरण्यवर्णां हरिणीं सुवर्णरजतस्त्रजाम् ।
चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आवह
तां म आवह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम् ।
यस्यां हिरण्यं विन्देयं गामश्वं पुरुषानहम्
अश्वपूर्वां रथमध्यां हस्तिनाद प्रबोधिनीम् ।
श्रियं देवीमुपह्वये श्रीर्मा देवीर्जुषताम्
कां सोस्मितां हिरण्यप्राकारामार्द्रां ज्वलन्तीं तृप्तां तर्पयन्तीम् ।
पद्मे स्थितां पद्मवर्णां तामिहोपह्वये श्रियम् ॥
चन्द्रां प्रभासां यशसा ज्वलन्तीं श्रियं लोके देवजुष्टामुदाराम् ।
तां पद्मिनीमीं शरणमहं प्रपद्येऽलक्ष्मीर्मे नश्यतां त्वां वृणो ॥
आदित्यवर्णे तपसोऽधिजातो वनस्पतिस्तव वृक्षोऽथ बिल्वः ।
तस्य फलानि तपसा नुदन्तु मायान्तरायाश्च बाह्या अलक्ष्मीः ॥
उपैतु मां देवसखः कीर्तिश्च मणिना सह ।
प्रादुर्भूतोस्मि राष्ट्रेऽस्मिन् किर्तिमृद्धिं ददातु मे ॥
क्षुत्पिपासामलां ज्येष्ठामलक्ष्मीं नाशयाम्यहम् ।
अभूतिमसमृद्धिं च सर्वां निर्णुद मे गृहात् ॥
गन्धद्वारां दुराधर्षां नित्यपुष्टां करीषिणीम् ।
ईश्वरीगं सर्वभूतानां तामिहोपह्वये श्रियम्
मनसः काममाकूतिं वाचस्सत्यमशीमहि ।
पशूनां रुपमन्नस्य मयि श्रीः श्रयतां यशः ॥
कर्दमेन प्रजा-भूता, मयि सम्भ्रम-कर्दम।
श्रियं वासय मे कुले, मातरं पद्म-मालिनीम्॥
आपः सृजन्तु स्निग्धानि, चिक्लीत वस मे गृहे।
निच-देवी मातरं श्रियं वासय मे कुले
आर्द्रां पुष्करिणीं पुष्टिं, सुवर्णां हेम-मालिनीम्।
सूर्यां हिरण्मयीं लक्ष्मीं, जातवेदो ममावह ॥
ॐ महादेव्यै च विद्महे विष्णुपत्नी च धीमहि । तन्नो लक्ष्मीः प्रचोदयात्

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