हर धर्म के अपने-अपने कुछ शुभ प्रतीक होते हैं जिनका उपयोग शुभ मांगलिक कार्यों के प्रारंभ में किया जाता है।ऐसा माना जाता है कि उनके उपयोग से कार्य सफल होगा। हिन्दू धर्म के चार ऐसे ही प्रतीकों के बारे में प्रचलित लोक मान्यताओं का वर्णन हम यहां नीचे कर रहे हैं। ये प्रतीक हैं स्वस्तिक का चिन्ह, आम्रपत्र, शंख एवं कलश। ये हिन्दू धर्म के शुभ प्रतीक हैं और पूजा अर्चना के समय इनकी जरूरत पड़ती ही है।
स्वस्तिक चिन्ह:- स्वस्तिक को मांगलिक चिन्हों में सबसे प्रमुख स्थान प्राप्त है। ऐसा माना जाता है कि इसमें शक्ति, प्रेरणा और सौंदर्य का सम्मिश्रण है। ऋग्वेद के स्वस्तिक सूर्य का प्रतीक है और सूर्य समस्त दैवीय शक्तियों का केन्द्र है। सूर्य जीवनदाता हैं। स्वस्तिक को सूर्य की प्रतिमा मानते हुए उसकी आराधना कर सूर्य की समस्त विशेषताओं को जगाने का उपक्रम किया जाता है। स्वस्तिक की चार भुजाएं चार दिशाएं भी मानी गई हैं। इस तरह हिन्दू धर्म की मान्यता है कि स्वस्तिक मानव और समस्त विश्व के लिए कल्याणकारी है। यह समृध्दिदायक हैं यद्यपि जर्मनी में यह क्रूरता-संकीर्णता का परिचायक है।
आम्रपत्र:- आम के पत्ते धार्मिक कार्यों में शुभ माने गये हैं। हवन के लिए आम की सूखी लकड़ी प्रयोग की जाती है। आम की लकड़ी जब जलती है तो मोहक सुगंध आती है। कहने हैं इससे दूषित विचार भागते हैं। आम पर पतझड़ का असर नहीं होता। यद्यपि आम के पके पत्ते पीले हो-होकर झड़ते रहते हैं फिर भी यह साल भर हरा-भरा रहता है। आम पर हमेशा नयी कोंपलें आती रहती हैं। पतझड़ के मौसम में जहां अनेक बड़े वृक्ष पत्ताविहीन हो जाते हैं उसी समय आम पर नये पत्ते और बौर फूल आते हैं तो हिन्दू धर्म के शुभ कार्यों में आम इस उम्मीद के साथ प्रयोग होता है कि जिस प्रकार आम सदाबहार रहता है वैसे ही उनका अपना जीवन भी सदैव आनंदमय रहे। संभव है कि इस दृष्टिकोण से भी आम्रपत्र आदि का उपयोग होता हो कि यह फलों केराजा का महत्वपूर्ण अंश है।
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